Dated: August 2024
जैन मंदिर पुजारी विवाद
जैन मंदिर पुजारी विवाद धर्म में हर अनुयायी स्वयं पूजा कर सकता है।
यहाँ पूजा केवल पुजारी तक सीमित नहीं है।
“पुजारी” शब्द परंपरागत जैन परंपरा में स्वीकार्य नहीं माना गया है।
कानूनी दृष्टिकोण
अजैन कर्मचारी को “पुजारी” कहना कानूनी भ्रम पैदा करता है।
वे दान और संपत्ति पर दावा कर सकते हैं।
न्यायालय सामान्य कानूनों के तहत निर्णय देते हैं।
इससे जैन मान्यताओं की अनदेखी होती है।
इसका परिणाम
मंदिरों को बार-बार कानूनी विवादों का सामना करना पड़ता है।
अजैनों के स्वामित्व व पूजा अधिकारों के दावे खड़े हो जाते हैं।
मंदिर संचालन में रुकावट आती है।
ऐतिहासिक उदाहरण और समाधान
ऋषभदेव और राणकपुर तीर्थों में वर्षों से समस्याएं चल रही थीं।
शत्रुंजय तीर्थ पर कानूनी लड़ाई शुरू हुई थी।
सेठ कस्तूरभाई और आनन्दजी पेढ़ी ने समाधान खोजा।
उन्होंने पुजारियों के अधिकार खरीदकर समाप्त कर दिए।
न्यायाधीशों की राय
जस्टिस गुमानमल लोढ़ा ने “पुजारी” शब्द का विरोध किया।
अपनी पुस्तक में उन्होंने यह स्पष्ट रूप से लिखा।
पत्रिकाओं की चेतावनी
‘श्रवण भारती’ पत्रिका ने पहले ही यह मुद्दा उठाया था।
उन्होंने अपने संपादकीय में चेतावनी दी थी।
नई समस्या – सरकारी योजना
सरकार पुजारियों के लिए पेंशन योजना शुरू कर रही है।
अजैन कर्मचारी इसका अनुचित लाभ उठाने का प्रयास करेंगे।
“पुजारी” शब्द के कारण वे पात्र बन सकते हैं।
स्पष्ट निर्देश
जैन मंदिरों में किसी को “पुजारी” न कहें।
यह जैन परंपरा और स्वायत्तता की सुरक्षा के लिए जरूरी है।
सभी जैनों को सजग रहना चाहिए।