Dated: May 2024
एकल परिवार के नुकसान भारतवर्ष में प्राचीन काल से संयुक्त परिवार का प्रचलन रहा है।
एकल परिवार के नुकसान भरे-पूरे परिवार को श्रेष्ठ, शक्तिशाली और हर दृष्टि से महत्त्वपूर्ण माना गया है। परन्तु वर्तमान में छोटा एवं एकल परिवार का चलन तेजी से बढ़ रहा है, जो कि अनेक दृष्टियों से हानिकारक सिद्ध हो रहा है। यह विषय चिंतन और आत्ममंथन की माँग करता है।
एकल परिवार की व्यावहारिक कठिनाइयाँ
- बच्चों का लालन-पालन सही ढंग से नहीं हो पाता।
- पारिवारिक संस्कारों से युक्त संतानों का निर्माण कठिन हो जाता है।
- आपसी सहयोग, परस्पर स्नेह और सहनशीलता का अभाव होता है।
- एकल परिवार आर्थिक दृष्टि से भी कमजोर पड़ सकता है।
- बीमारी, चिकित्सा, दुःख-दर्द की स्थिति में सहारा मिलना कठिन हो जाता है।
- घर और सम्पत्ति की सुरक्षा, विशेषकर वृद्धावस्था में, बड़ी चुनौती बन जाती है।
सामाजिक और धार्मिक दायित्वों में बाधाएँ
- तीर्थ यात्रा, भ्रमण और रिश्तेदारी के कार्यक्रमों में सम्मिलित होना आसान नहीं रहता।
- व्यापार-धंधों के विस्तार एवं प्रबंधन का दायित्व अकेले निभाना कठिन होता है।
- एकल परिवार में विशाल दृष्टिकोण, विनयशीलता और पारिवारिक मर्यादा का विकास नहीं हो पाता।
- सामाजिक और धार्मिक आयोजनों में योगदान देना सीमित रह जाता है।
बुजुर्गों और निःसंतान दम्पत्तियों की समस्या
- सुपुत्र यदि बाहर या विदेश में नौकरी करता है तो अकेले बुजुर्गों को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
- निःसंतान दम्पत्तियों के लिए जीवन यापन कठिन और अकेलापन असहनीय बन जाता है।
एकल परिवार और विवाह संबंध
आजकल लड़कियों के रिश्ते तय करते समय एकल परिवार को प्राथमिकता दी जाती है, जबकि यह दृष्टिकोण व्यावहारिक रूप से विपरीत प्रभाव डाल सकता है। एकल परिवारों की कठिनाइयाँ दीर्घकालिक होती हैं, जिन्हें समझना और स्वीकारना आवश्यक है।
निष्कर्ष: संयुक्त परिवार को अपनाएँ
इसलिए अब समय है कि हम उदारता, सहनशीलता और विशाल मनोवृत्ति को अपनाएँ और संयुक्त, सुखद और सशक्त परिवार प्रणाली की ओर लौटें।
संयुक्त परिवार सिर्फ एक परंपरा नहीं, बल्कि सामाजिक सुरक्षा और मानसिक शांति का आधार है।