डायलाना में चातुर्मास की धर्म आराधना आचार्य श्री अरविंदसागर सूरीश्वरजी के सान्निध्य में

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डायलाना कलां में चातुर्मास: संयम, साधना और समरसता का अद्वितीय संगम
कार्यकारी संपादक – कर्मपालसिंह सवाली, पाली (डायलाना), राजस्थान

वर्षा ऋतु के आगमन के साथ ही जैन धर्म में चातुर्मास का विशेष आध्यात्मिक काल प्रारंभ होता है। यह चार महीनों का वह पावन समय होता है जब संन्यासी, साधु और साध्वियाँ विहार नहीं करते, बल्कि एक ही स्थान पर स्थिर होकर तप, स्वाध्याय और आत्मकल्याण की दिशा में अग्रसर रहते हैं। डायलाना कलां गांव इन दिनों एक ऐसे ही पुण्य अवसर का साक्षी बन रहा है, जहाँ आचार्य श्री अरविंदसागरसूरीश्वरजी म.सा. के पावन सान्निध्य में चातुर्मास का शुभारंभ हुआ है। गुरुवर श्री ने अपने प्रवचनों में चातुर्मास की आध्यात्मिक महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा –
अहिंसा केवल एक शब्द नहीं, बल्कि जीवन जीने की शैली है।
जब बेंगलुरु जैसे महानगरों से श्रद्धालु इस छोटे से गांव में आकर चार माह तक धर्म आराधना में लीन होते हैं, तो यह स्पष्ट होता है कि अब शांति की खोज महानगरों से गांवों की ओर लौट रही है। डायलाना श्रीसंघ, संघ अध्यक्ष श्री कांतिलाल मेहता और ट्रस्ट मंडल के समर्पित प्रयासों ने इस आयोजन को केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि सम्पूर्ण क्षेत्र का धर्मोत्सव बना दिया है। गांव का प्रत्येक घर सेवा में जुटा है – कोई भोजन व्यवस्था में, कोई प्रवचन स्थल की सफाई में, कोई पांडाल की सजावट में। यह सेवा भावना डायलाना को एक जीवंत तपस्थली में परिवर्तित कर रही है। चार माह की इस तप साधना के दौरान प्रतिदिन प्रातः प्रवचन, तप आराधना, सामूहिक ध्यान और सायंकालीन जिनवाणी श्रवण का क्रमबद्ध आयोजन हो रहा है।आचार्य श्री की वाणी में गहराई, सरलता और आत्मिक स्पर्श का ऐसा समन्वय है कि बालक से वृद्ध तक सभी सहज ही आत्मविवेचन की ओर प्रेरित हो रहे हैं।डायलाना व समीपवर्ती गांवों के लिए यह आयोजन केवल धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि आत्मिक उन्नयन और सामाजिक समरसता का उत्सव बन चुका है। देश के विभिन्न कोनों से आने वाले श्रद्धालु यहां की सेवा भावना, श्रद्धा और संस्कृति से अभिभूत हो रहे हैं।

निस्संदेह, चातुर्मास का यह आयोजन न केवल गांव की गरिमा बढ़ा रहा है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी जैन धर्म की मूल भावनाओं – अहिंसा, संयम, तप और श्रद्धा से जोड़ रहा है।

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