महाराष्ट्र के कोल्हापुर में हजारों लोगों ने करीब 45 किलोमीटर लंबी पदयात्रा कर हथनी “माधुरी” (महादेवी) को बचाने की मांग उठाई। 33 वर्षीय माधुरी तीन दशकों से कोल्हापुर के नंदनी गांव स्थित एक जैन मठ में धार्मिक परंपरा के तहत श्रद्धालुओं को आशीर्वाद देती रही है। जैन अहिंसावादी एवं पशु प्रेमी समाज है, स्थानीय लोगों का कहना है कि माधुरी केवल एक हाथी नहीं, बल्कि आस्था और संस्कृति का जीवंत प्रतीक है, जिससे हर परिवार का भावनात्मक जुड़ाव है।
हाल ही में कोर्ट के आदेश पर माधुरी को गुजरात के जामनगर में अनंत अंबानी के वन्यजीव बचाव केंद्र “वंतारा” भेजा गया। पशु संरक्षण संगठन पेटा का दावा है कि माधुरी कैप्टिविटी में थी और उसे बेहतर जीवन व उपचार की आवश्यकता थी। दूसरी ओर, स्थानीय लोग आरोप लगाते हैं कि उसे परिचित माहौल से दूर कर निजी उद्देश्य के लिए ले जाया गया। वंतारा पक्ष का कहना है कि यह दुनिया का सबसे बड़ा वन्यजीव रेस्क्यू और पुनर्वास केंद्र है, जहां आधुनिक सुविधाओं से जानवरों का इलाज किया जाता है।
माधुरी के विदा होते समय उसके आंसुओं और ग्रामीणों की भावुक विदाई की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो गईं, जिसने आंदोलन को और तेज कर दिया। कई लोगों ने विरोध स्वरूप जियो का बहिष्कार भी शुरू कर दिया।
सरकार ने मामले पर चर्चा के लिए बैठक बुलाई है। यह पूरा विवाद ऐसे समय में सुर्खियों में है जब 12 अगस्त को विश्व हाथी दिवस मनाया गया, जिसका उद्देश्य हाथियों के संरक्षण और उनके प्रति संवेदनशीलता बढ़ाना है। अब सवाल यह है कि क्या वन्य जीवों को केवल कानूनी प्रावधानों के तहत जंगल में ही रहना चाहिए, या फिर जहां मानवीय प्रेम, धार्मिक महत्व और सांस्कृतिक पहचान जुड़ी हो, वहां उनकी उपस्थिति को भी सम्मान दिया जाना चाहिए